द्राक्षासव आयुर्वेद का एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली आसव आरिष्ट वर्ग का हर्बल टॉनिक है, जो विशेष रूप से द्राक्षा (अंगूर) से निर्मित होता है। यह एक मधुर और बलवर्धक औषधि है जो विशेष रूप से पाचन, भूख, थकावट, एनीमिया और मानसिक तनाव जैसे रोगों में उपयोगी मानी जाती है।
आयुर्वेद में इसे ‘बल्य’, ‘दीपन’, ‘पाचन’, ‘रक्तवर्धक’ और ‘हृदय tonic’ के रूप में वर्णित किया गया है।
मुख्य घटक – निर्माण विधि
मुनक्का (द्राक्षा) 4.8 किग्रा
शर्करा (गुड़ / चीनी) – 9.6 किग्रा
जल (पानी) – 49.2 लीटर
धातकी पुष्प (Woodfordia floribunda ) – 768 ग्राम लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता- प्रत्येक 48 ग्राम
सौंठ, काली मिर्च, पीपली – प्रत्येक 48 ग्राम
विदंग, त्रिकटु, चवचिनि, त्रिफला प्रत्येक 48 ग्राम मधु (शुद्ध शहद) 2.4 किग्रा
द्राक्षासव बनाने की विधि:
1. मुनक्का को हल्के गरम पानी में 6-8 घंटे भिगो दें। 2. फिर उसे मसलकर पानी में मिला लें।
3. शेष सभी औषधियों को ठीक से कूट-छानकर इसी पानी में डालें।
4. गुड़ या शक्कर मिलाकर किसी साफ काँच या मिट्टी के बर्तन में भर दें।
5. बर्तन को एक सूखी, अंधेरी और गर्म जगह पर 30 दिनों तक ढक्कन लगाकर रखें।
6. 30 दिन बाद छानकर इसमें शुद्ध शहद मिलाएं।
द्राक्षासव के औषधीय लाभ:
थकान और कमजोरी में रामबाणः द्राक्षासव शरीर को त्वरित ऊर्जा देता है। रक्त को पोषण देता है, मानसिक थकावट दूर करता है। पाचन सुधारक और भूख बढ़ाने वाला: यह जठराग्नि को उत्तेजित कर अपच, गैस, एसिडिटी और भूख न लगने की समस्या में लाभकारी है।
मंदाग्नि और अजीर्ण में कारगर : पुराने पेट के रोग जैसे बदहजमी, अफारा, पेट फूलना आदि में बहुत लाभदायक ।
एनीमिया (रक्त की कमी): शरीर में रक्त की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाता है। यह हेमोग्लोबिन के स्तर को सुधारता है।
हृदय रोगों में लाभकारी : हृदय की धड़कन को संतुलित करता थकावट और नाड़ी संबंधी समस्या को शांत करता है।
बच्चों, वृद्धों और महिलाओं के लिए टॉनिक: विशेष रूप से महिलाओं में मासिक धर्म की कमजोरी, थकावट में उत्तम रसायन ।
तनाव और अनिद्रा में सहायक: मानसिक थकावट, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन को शांत करता है ।
सेवन विधि :
वयस्क – 10-20 ml भोजन के बाद दिन में 2 बार बच्चे (5+ वर्ष) 5-10ml – डॉक्टर की सलाह से
द्राक्षासव को बराबर मात्रा में गुनगुने पानी से लेना चाहिए।
घरेलू नुस्खों में द्राक्षासव का उपयोग:
• थकावट और कमजोरी: 10 ml द्राक्षासव + 10 ml आँवला रस = सुबह खाली पेट ।
● पाचन सुधारः द्राक्षासव + त्रिफला चूर्ण का रात को सेवन ।
• सिर दर्द और अनिद्रा: द्राक्षासव + ब्राह्मी सिरप मिलाकर रात को
काँच की बोतलों में भरकर रखे
ध्यान दें: यह प्रक्रिया स्वाभाविक किण्वन ( पर आध
है, इसलिए आयुर्वेद में “स्वयंसिद्ध आसव” कहा जाता है।
द्राक्षासव के आयुर्वेदिक गुण:
• रस – मधुर
वीर्य – उष्ण (गरम); विपाक मधुर; दोष मधुर, प्रभाव – वात और पित्त को संतुलित करता है; गुण बल्य, रसायन, पाचन, रक्तवर्धक, हृदयबल्य, मूत्रल
द्राक्षासव केवल एक हर्बल टॉनिक नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक जीवनशैली का मीठा और सेहतमंद हिस्सा है। यह शरीर को बल, बुद्धि और स्वास्थ्य प्रदान करता है – वह भी बिना किसी रासायनिक दवा के । आज की भागदौड़ और अनियमित जीवन में द्राक्षासव एक ऐसा समाधान है जो आयुर्वेद की जड़ों से जुड़कर तन-मन दोनों को शक्ति देता है।
